एक छोटे बच्चे के रूप में हमें सौम्य साबुनों से स्नान कराया जाता था। बड़े होने पर हम पसंदीदा सुगंध युक्त साबुनों व शैम्पू का प्रयोग करने लगे।
साबुन का इतिहास
हमारे पास इतने सारे विकल्प कैसे आए। साबुन जैसी सामग्री के सर्वप्रथम प्रयोग का अभिलिखित इतिहास 28 सौ ईसा पूर्व के प्राचीन बेबीलोन से संबंधित है।
बाद में मिस्रवासियों ने जंतु एवं वनस्पतियों से प्राप्त तेलों व क्षारीय लवणों का संयोजन किया। परिणाम स्नान के लिए साबुन जैसा पदार्थ तैयार किया गया।
19वीं शताब्दी में सोडियम कार्बोनेट अथवा सोडा राख के उत्पादन की अमोनिया सोडा प्रक्रिया को बेल्जियम रसायन विद् अर्नेस्ट सालवे द्वारा विकसित करने के बाद जो कि सोडियम हाइड्रोक्साइड अथवा साजेदार पानी से सस्ती होने के कारण प्रयोग की जाती थी।
वाणिज्यिक साबुन निर्माण बड़े स्तर पर किया जाने लगा। आज वाणिज्यिक उत्पादन के कारण हमारे पास भाँति-भाँति के साबुन, शैम्पू यहां तक कि वस्त्र प्रक्षालन के अप्मार्जक उपलब्ध हैं।
ये सफाई कर्मक हमारी दिनचर्या का भाग बन चुके हैं।
साबुन निर्माण
इन साबुनों वह अप्मार्जक को कैसे बनाया जाता है।
औद्योगिक साबुन निर्माण में चार प्रमुख चरण होते हैं।
1. साबुनीकरण
2. ग्लिसरीन का निष्कासन
3. साबुन का शोधन
4. परिष्करण
1. साबुनीकरण
साबुनीकरण में श्रारों के साथ वसा एवं तेलों का संयोजन किया जाता है जिन्हें औश्मित या गर्म करने से ग्लिसरीन व साबुन का निर्माण होता है।
रोम भाषा लैटिन में सैंपौ का अर्थ साबुन होता है। साबुन बनाने में प्रयोग किए जाने वाले वसा एवं तेलों को ट्राइग्लिसराइड्स कहा जाता है।
अधिकांश साबुनों को वानस्पतिक तेलों जैसे जैतून का तेल, ताड़ का तेल व नारियल का तेल से बनाया जाता है।
कुछ साबुन जन्तु वसा या चर्बी से बनाए जाते हैं। साबुन निर्माण में सर्वाधिक प्रयोग किए जाने वाले किशारों में सोडियम हाइड्रोक्साइड अथवा NaoH व पोटेशियम हाइड्रोक्साइड अथवा AoH सम्मिलित हैं।
क्षार के रूप में सोडियम हाइड्रोक्साइड का प्रयोग करने से सोडियम साबुन निर्मित होता है जो कि कठोर होता है।
एवं क्षार के रूप में पोटेशियम हाइड्रोक्साइड का प्रयोग करने से पोटेशियम साबुन बनता है जोकि सौम्य होता है।
एक बार साबुनीकरण पूर्ण हो जाने पर कुछ ग्लिसरीन हटाकर थोड़े से ग्लिसरीन को साबुन में छोड़ दिया जाता है ताकि यह सौम्य रहे।
फिर सोडियम हाइड्रोक्साइड को दुर्बल अम्ल से उदासीनीकरण करते हुए साबुन का शोधन किया जाता है। शेष बचे जल को भी हटा दिया जाता है।
अंततः साबुन में वर्ण यानी रंग,सुगंधित द्रव्य एवं परिरक्षक मिलाए जाते हैं तथा साबुन को टिकिया के सांचे में ढाल लिया जाता है।
साबुन की सफाई-क्रिया
यदि आपने खराब कपड़ों अथवा टाइल लगे बर्तनों को सादे पानी से धोने का प्रयास किया हो तो पता होगा कि उससे गंदगी नहीं निकलती क्योंकि तैल व गंदगी की प्रवृति कार्बनिक होती है
जो कि जल में विलय शील है। साबुन को जब जल में विलीन किया जाता है यानी घोला जाता है तो साबुन के कण मैल निवारक का कार्य करने लगते हैं।
साबुन के अणु कार्बन व हाइड्रोजन परमाणुओं की लंबी श्रृंखलाओं से बने होते हैं श्रृंखला के एक सिरे पर परमाणुओं का अभिविन्यास जल रागी होता है अर्थात वे जल में विलय शील होते हैं।
जबकि दूसरा सिरा जल भीत होता है अर्थात वे जल में विलीन तो नहीं होते किन्तु तैल अथवा हाइड्रोकार्बन में अवश्य विलीन हो जाते हैं।
साबुन से प्रक्षालन किए यानी धोए जाने पर साबुन के अणुओं के जल भीत सिरे गंदगी व तेल के कणों की और आकर्षित हो जाते हैं।
साबुन के अणु तैल अथवा गंदगी के कणों को घेर कर उसे शिथिल यानी ढीला कर देते हैं एवं मिशेल नामक गेंद जैसी संरचना का निर्माण कर लेते हैं।
जल रागी सिरे मिशेल्स के बाहर व जल भीत सिरे मिशेल्स के भीतर रह जाते हैं। ये मिशेल्स जल में अवलंबित रहते हैं
एवं जल के बहाव द्वारा दूर कर दिए जाते हैं। उनके साथ गंदगी व तेल के कण भी दूर हो जाते हैं। अपने गंदे कपड़े व तेल लगे बर्तन अब साफ हो चुके होते हैं।