Keratoconus
Keratconus (Conical Cornea)
Kerato – Cornea और Conus – Come Shape
कॉर्निया जो कि सामान्य गोल आकृति का होता है वह केराटॉकोनस (keratoconus) बीमारी में कोन् (Cone) आकृति का होने लगा लग जाता है।
जिस कारण पेशेंट का vision या देखने की क्षमता कम होने लगती है और कई बार तो बहुत बढ़ जाने पर पेशेंट ब्लाइंड यानी अंधा भी हो सकता है।
Keratoconus क्यों होता है?
अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि इसका आखिरकार वास्तविक कारण क्या है। लेकिन यह सामान्य पारिवारिक (Family History) या यह आनुवंशिक भी हो सकता है।
मतलब अगर आपके परिवार में पहले से ही किसी सदस्य जैसे दादा, मामा या अन्य कोई परिवार के सदस्य को पहले से ही कैरेक्टोकोनस है तो आपको भी यह बीमारी हो सकती है।
Keratoconus को कैसे पहचाने
अगर कोई पहले से ही चश्मे पहन रहा है फिर भी उसे साफ नहीं दिखा देता और बार-बार उसके चश्मे के नंबर बदल रहे हो।
कोई बच्चा बहुत ज्यादा आंखों को मसल रहा है और काफी ज्यादा आंखों में एलर्जी रहती हो।
ऐसी पेशेंट जिनके चश्मा के नंबर बहुत ज्यादा सिलैंडरिकल है।
जब कभी आप डॉक्टर के पास आंखों के चेकअप के लिए जाएंगे तो वह आपकी आंखों की जांच करके स्वीट लैंप पर देखकर और आजकल तुम चश्मा के नंबर निकालने वाली मशीनों से कॉर्निया के कर्वेचर की रीडिंग देखकर भी आपको केराटॉकोनस (keratoconus) की जांच करवाने की सलाह देंगे। इस जांच को कॉर्नियल टोपोग्राफी कहते हैं।
Curvature of Cornea in Keratoconus
नॉर्मली कॉर्निया की पावर 43D से 44D तक होती है लेकिन इस बीमारी में यह काफी ज्यादा बढ़ जाती है। और उसी के आधार पर उसकी ग्रेड देते हैं जैसे <48D है तो कम, 48D से 54D है तो मॉडरेट और अगर >54D से भी ज्यादा है तो वह गंभीर केराटॉकोनस माना जाएगा।
केराटॉकोनस का इलाज
अगर हमें पता चल गया है की आंख में केराटॉकोनस है तो अब इसका इलाज क्या है क्या इसको वापस कोन् आकार से गोलाकार में किया जा सकता है? यही सवाल लोगों के मन में भी रहता है और इसे समझना बहुत ज्यादा जरूरी है।
जो कॉर्निया Cone Shape का हो चुका है उसको वापस गोलाकार नहीं किया जा सकता उसे उसी जगह बढ़ने से रोका जा सकता है। जिससे कि जो कॉर्निया आगे बढ़ रहा है और कौन जैसा हो रहा है। और केवल एक तरीका है जिससे कॉर्निया को वापस से गोल आकृति जैसा बनाया जा सकता। जिसकी वजह से आंखों के नंबर भी बढ़ते जा रहे हैं और रोशनी भी काम हो रही है उसे एक जगह स्थिर किया जा सकता है।
चश्मा
सबसे पहले तो अगर किसी के सिलैंडरिकल नंबर है और अभी उसको पता ही चला है कि उसको केराटॉकोनस है, तो उसे सबसे पहले चश्मा का नंबर पहनाएंगे।
कांटेक्ट लेंस
केराटॉकोनस की शुरुआत में कांटेक्ट लेंस काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। कॉन्टैक्ट लैंसेज में सबसे ज्यादा कठोर कॉन्टैक्ट लेंस (Hard Contact Lens) ज्यादा उपयोगी है और जिसमें भी स्क्लेरा कॉन्टैक्ट लेंस ( Sclera Contact Lens) ज्यादा अच्छे है। यह कॉर्निया को चपटा बनाए रखने में मदद करते हैं।
C3R क्या है?
केराटॉकोनस (Keratoconus) को रोकने का एक तरीका C3R है। जो काफी अत्याधुनिक तरीका है।
Full Form of C3R
C3R का पूरा नाम Corneal Collagen Cross-linking with Riboflavin है।
इसमें कॉर्निया (Cornea) के कॉलेजन टिशूज (Collagen Tissues) की क्रॉस लिंकिंग (Cross Linking) करवाई जाती है Riboflavin की ड्रॉप्स के साथ।
जिसमें कॉर्निया को कांच की तरह लेजर की मदद से मजबूत किया जाता है।
C3R करने की प्रक्रिया
यह 1 घंटे की प्रक्रिया होती है जिसमें सबसे पहले कोरिया की सबसे ऊपरी परत को हटाया जाता है उसके बाद उसमें राइबोफ्लेविन की ड्रॉप्स डाली जाती है और उसके बाद लेजर को डाला जाता है। लेजर प्रक्रिया को खत्म होने के बाद उसके बाद उसके ऊपर पट्टी वाला लेंस (BCL – Bandage Contact Lens) लगा दिया जाता है और उसे अगले दिन हटा देते हैं।
इस प्रक्रिया से केराटॉकोनस बढ़ने से रुक जाता है।
Intacs
गंभीर और उससे थोड़े कम केराटॉकोनस में इंटेक्स बहुत अच्छा इलाज है। जिसमें कॉर्निया के अंदर रिंग्स डालकर उसे चपटा किया जाता है।
अगर किसी पेशेंट में बहुत ज्यादा या हाई ग्रेड केराटॉकोनस है तो पहले c3r करेंगे उसके बाद इंटेक्स लगाएंगे।
कॉर्निया को बदलना
यदि कोई पेशेंट है जिसके बहुत ही ज्यादा केराटॉकोनस हो गया है जिससे उसका कॉर्निया भी पूरा खराब हो चुका है और c3r से भी कुछ फायदा नहीं होगा उनमें पूरी कॉर्निया को ही बदल दिया जाता है और यह सबसे ज्यादा कारगर इलाज है।