कंकाल तंत्र की रीढ़ : रीढ़ की हड्डी क्या काम करती है, हड्डियां, रीढ़ के भाग और संरचना

रीढ़ की हड्डी को मेरुदंड भी कहते है।

मेरुदंड या रीढ़ हमारे कंकाल तंत्र का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। यह हमारे कंकाल को कई तरीको से सहायता करती है। आइये कंकाल तंत्र की रीड के बारे मे आपने पढ़ाई शुरू करते है।

कंकाल तंत्र कि रीढ़ : संरचना, भाग और कार्य | Working of Spine Bone and Structure in hindi | Skeleton

रीढ़ की हड्डी क्या काम करती है?

हमारी रीढ़ शरीर के तीन बहुत ही जरूरी हिस्सों सिर, पसलियों और कूल्हों को जोड़ने का काम करती है।

रीढ़ की बनावट शरीर के ऊपरी हिस्से को बहुत मजबूती से सहारा देती है। फिर भी ये बेहद लचीली है जिसके कारण हम आराम से मुड़ या झुक पाते हैं।

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रीढ़ में कितनी हड्डियां होती है?

मेरुदंड या रीढ़ की हड्डी 24 अलग-अलग छोटे हिस्सों या हड्डियों से बनी होती है।

इसमेंछोटी कठोर हड्डियां होती है, जो रीढ़ को मजबूती देती हैं। इन छोटी मजबूत हड्डियों के बीचो-बीच में लचीले ऊतक होते हैं जिनके कारण ये सभी हड्डियां हिल डुल पाती हैं।

हर छोटी हड्डी अपनी जगह पर तो थोड़ा सा ही मुड़ती है पर सभी हड्डियों का ये थोड़ा थोड़ा मिलकर मुड़ना। कुल मिलाकर रीढ़ को काफी मोड़ने की क्षमता देता है।

रीढ़ के कार्य

रीढ़ संतुलन बनाए रखने में हमारी मदद करते हैं। यही रीढ़ हमारे शरीर को सीधा खड़े रखने वाला मज़बूत ढांचा है। रीढ़ की हर छोटी हड्डी की बनावट एक दूसरे से अलग होती है।

कुछ इसे मजबूती देने के लिए बनी हैं तो कुछ लचीलापन देने के लिए रीढ़ द्वारा किए गए हर काम का प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है।

छाती वाला भाग पीछे जाता है तो सेक्रम यानि पिछला हिस्सा आगे की ओर झुकता है क्योंकि पसलियां और कूल्हे रीढ़ से जुड़े होते हैं तो वो इस झुकाव को आगे ले जाते हैं।

इसीलिए रीढ़ की वास्तविक स्थिति थोड़ी घुमावदार है और न की सीधी होती है।

रीढ़ के चार हिस्से  होते है।

1. गर्दन का सर्वाइकल भाग

2. छाती में पसलियों वाला भाग

3. पीठ का निचला भाग

4. रीढ़ का निचला या सबसे आखिरी हिस्सा

1. गर्दन का सर्वाइकल भाग

सरवाईकल(cervical) क्या है?

सरवाईकल (cervical) रीढ़ की हड्डी का सबसे पतला और सबसे नाजुक हिस्सा होता है इसलिए यह गर्दन को ज्यादा लचीला होने देता है।

सरवाईकल  के भाग

 1.  एटलस (Atlas)

  2. एक्सिस (Axis)

ऐक्सिस बेलन के आकार की हड्डी होती है जो एटलस के अंदर जाती है।  एटलस  एक्सिस के आस पास लिपटी हुई होती है। अब क्या तुम अंदाजा लगा सकते हो कि एटलस और एक्सिस मिलकर कौनसा जोड़ बनाते हैं।

 जरा सोच कर तो देखो। सही सोचा पिवट जोड़  सरवाईकल  हड्डी इसी जोड़ यानी जहां एटलस और ऐक्सेस आपस में मिलते हैं। इसके इर्द गिर्द सबसे ज्यादा हिल डुल सकती हैं

 इसलिए हमारा सर दोनों ओर घूम सकता है और गर्दन  के बाकी हिस्सों से बहुत ज्यादा मदद के बिना भी ऊपर नीचे हो सकता है लेकिन सर में तिरछा झुकाव नहीं है। यह काम गर्दन को करना पड़ता है। चलो इसे फिर से देखते हैं सरवाईकल  भाग रीढ़ के बाकी भागों से अलग होता है। यह सर को चारों ओर घुमाता है और सभी दिशाओं में हिल डुल सकता है।

2. छाती में पसलियों वाला भाग

छाती का भाग थोडा ज्यादा सीमित होता हैं और इन्हें एक साथ काम करना होता है। छाती का भाग पीछे मुड़कर देखने के लिए जिम्मेदार होता है।

इसलिए आप सोचते होंगे कि इसमें लचक ज़्यादा होती है लेकिन ऐसा नहीं है और इसमें लचक खिंचाव और दाएं बाएं झुकाव बहुत कम होते हैं और इसीलिए छाती का यह हिस्सा स्थिर रहता है। हालांकि यह हड्डियाँ गर्दन को गोल घुमाने की क्षमता जरूर रखती हैं और यही इनका प्रमुख काम भी है।

इनके ऊपर शरीर के ऊपरी भाग का सारा वजन उठाने की जिम्मेदारी होती है और यही शरीर के आगे पीछे और एक तरफ झुकने का भी ख्याल रखती है।

छाती में पसलियों वाले भाग के हिस्से की छोटी हड्डियां निचले भाग जितनी बड़ी और मज़बूत नहीं होतीं।

3. पीठ का निचला भाग

कमर और छाती वाला भाग एक साथ काम करता है। कमर का भाग लचीलापन खिंचाव और तिरछे मुड़ने में मदद करता है।

4. रीढ़ का निचला या सबसे आखिरी हिस्सा

छोटी हड्डी के हिलने डुलने की अपनी एक सीमा होती है। रीढ़ के निचले भाग में सबसे बड़ी और सबसे मजबूत छोटी हड्डियां होती हैं।

रीढ़ का निचला या सबसे आखिरी हिस्सा जो दो अलग अलग हिस्सो सेक्रम और कोक्सीक्स से बना होता है। कोक्सीक्स उस हड्डी का अवशेष है जो जानवरों में दुम या पूंछ का हिस्सा बनाती है। बोलचाल की भाषा में इसे टेल बोन या दुंच भी कहते हैं। ये सभी भाग पीठ को चार घुमावदार मोड़ देते हैं।अगर रीढ़ एक सीधी रेखा में होती तो ये मजबूत तो बहुत होती है पर इसमें लचीलापन बिल्कुल नहीं होता। ये चार घुमावदार मोड़ रीढ़ को झटके झेलने के लिए लचीलापन देते हैं।

जब तुम अपने पैर के अंगूठे को छूने के लिए झुकते हो तो यही निचला हिस्सा सबसे ज्यादा झुकता है।

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