भूकंप क्या है कैसे आता है?
भूकंप in english – Earthquake
यह भूकंप एक ऐसी त्रासदी है जो हमारे जनजीवन को अस्त व्यस्त कर देती है और अगर भूकंप की तीव्रता ज्यादा हो तो भारी नुकसान के अलावा बहुत से जान भी चली जाती है।
देश के किसी न किसी कोने में भूकंप आते ही रहते हैं, जिससे बहुत सारी हानियां होती है।
यह ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिसे रोकने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए जा सकते हैं सिवाय अपना बचाव करने के। ऐसे में यह जानना समझना जरुरी है कि आखिर भूकंप क्यों आता है तो चलिए जानते हैं कि भूकंप क्यों आता है?
हमारी धरती मुख्य तौर पर तीन परतों से बनी हुई है।
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आवरण (Mantle)
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भू पर्पटी (Crust)
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केंद्रीय भाग(Core)
ऊपरी मैंटल परत (Mantle Layer) लिथोस्फीयर कहलाती है। ये 50 किलोमीटर की मोटी परत वर्गों में बंटी हुई है, जो टेक्टोनिक प्लेट्स कहलाती है।
सामान्य रूप से ये टेक्टोनिक प्लेट अपने स्थान पर हिलती रहती है और विस्थापित होती रहती है। इस सिद्धांत को प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत भी कहते हैं। लेकिन जब ये प्लेट्स ज्यादा हिलने डुलने लगते हैं तो धरती पर भूकंप आ जाता है।
भूकंप किस यंत्र से मापा जाता है?
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रिएक्टर स्केल (Richter Scale)
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मर्केली स्केल (Mercalli Scale)
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रिएक्टर स्केल (Richter Scale)
भूकंप कितना तीव्रता का होता है इसका मापन रिएक्टर स्केल (Richter Scale) के पैमाने से किया जाता है जिसे रियेक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल भी कहते हैं।
इस पैमाने की खोज उन्नीस सौ पैंतीस में कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में कार्यरत वैज्ञानिक चार्ल्स रियेक्टर ने बेनो गुटेनबर्ग के सहयोग से की थी। इसी स्केल से मापन के दौरान प्रति स्केल भूकंप की तीव्रता दस गुना बढ़ जाती है और भूकंप के दौरान निकलने वाली ऊर्जा प्रतिरोध इस स्केल बत्तीस गुना बढ़ जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि थ्री रिएक्टर स्केल पर भूकंप की जो तीव्रता आएगी वो तीव्रता चार रिक्टर स्केल पर दस गुना बढ़ जाती है।
रिएक्टर स्केल पर भूकंप के भयावह रूप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब आठ रिएक्टर पैमाने पर भूकंप आता है तो 60 लाख टन विस्फोटक से निकलने वाली ऊर्जा उत्पन्न कर सकती है।
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मर्केली स्केल (Mercalli Scale)
भूकंप को मापने के लिए मर्केली स्केल (Mercalli Scale) भी इस्तेमाल की जा सकती है। लेकिन इस स्केल में भूकंप को तीव्रता की बजाय ताकत के आधार पर मापा जाता है। इस स्केल का प्रयोग कम किया जाता है।
भूकंप के केंद्र यानी एपी सेंटर से निकलने वाली ऊर्जा की तरंगों से भूकंप की तीव्रता का अंदाजा लगाया जाता है। ये लहर सैकड़ों किलोमीटर तक फैली होती है और इससे होने वाले कंपन धरती के अंदर दरार डाल देते हैं। अगर भूकंप धरती की गहराई में आता है तो धरती की सतह पर ज्यादा नुकसान नहीं होता है लेकिन अगर भूकम्प की गहराई उथली होती है तो इसके बाहर निकलने वाली ऊर्जा सतह के काफी करीब होने के कारण भयंकर तबाही और जन धन की भारी क्षति पहुंचती है।
भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का खतरा हर स्थान पर अलग अलग है। भूकंप के क्षेत्रों के आधार पर भारत को चार हिस्सों में बांटा गया है। जोन दो, जोन 3 तीन, जोन चार और जोन पांच।
जिनमें से जोन दो सबसे कम खतरे वाला जोन है, जबकि जोन पांच सबसे ज्यादा खतरनाक जोन माना जाता है। उत्तर पूर्व के सभी राज्य जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन पांच में ही आते हैं। जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से जोन टू में आते हैं।
जहां भूकंप का सीमित खतरा रहता है। इंडोनेशिया और फिलीपींस के समुद्र में आए भूकंप ने सुनामी का रूप ले लिया और भारत श्रीलंका और अफ्रीका तक लाखों लोगों की जान ले ली। इसी तरह भारत ने महाराष्ट्र के लातूर गुजरात के कच्छ और जम्मू कश्मीर में भी बैठकर भूकंप आ चुके हैं।