विद्युत जनित्र कैसे कार्य करता है? और Electric Generator किस सिद्धांत पर काम

बिजली चले जाने पर आप इसका सामना कैसे करते हैं।

विद्युत का सामान्य वैकल्पिक स्रोत क्या है। विद्युत जनित्र है।

विद्युत जनित्र (Electric Generator)

यह किस प्रकार कार्य करता है।

विद्युत जनित्र का सिद्धांत क्या है?

विद्युत जनित्र, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है और यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।

 

एक विद्युत जनित्र में निम्न भाग होते हैं। एक स्थाई चुम्बक, एक घूर्णन कुंडली, चालक, ब्रुश।

दो वलय और एक धुरी।

कुंडली A, B, C, D आमतौर पर ताम्बे की बनी होती है जिसे स्थाई चुम्बक के दो ध्रुवों के मध्य रखा जाता है।

धुरी को बाहर से यांत्रिक रूप से घुमाने के द्वारा इसे चुम्बकीय क्षेत्र के भीतर घुमाया जाता है।

इससे कुंडली में धारा प्रेरित होती है।

 

कुंडली के दो सिरे एक दूरी से जुड़े दो अलग-अलग वलय से जुड़े रहते हैं।

वलय की आन्तरिक भाग एक दूसरे से और धुरी से विद्युत रोधी होते हैं।

दो स्थिर ब्रुश चालक B1और B2 वलयो के चालक किनारों को बाहर से स्पर्श करते हैं।

सामान्यतः ये ब्रुश कार्बन या कॉपर के बने होते हैं।

 

प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current)

कुण्डली को घुमाने के लिए धुरी को इस प्रकार घुमाया जाता है कि भुजा AB ऊपर की ओर गति करे और भुजा CD नीचे की ओर गति करे।

 

फ्लेमिंग के दाये हाथ का नियम?

फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम को लागू करके दिशा DCBA अनुदेश इन भुजाओं में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात की जाती है।

बाह्य परिपथ में धारा B1 से B2 की ओर गति करती है।

 

आधे घूर्णन के बाद भुजा CD ऊपर की ओर घूमना शुरू कर देती है और भुजा AB नीचे की ओर घूमती है जो प्रेरित धारा की दिशा बदलती है।

अब बाह्य परिपथ में धारा B2 से B1 की ओर प्रवाहित होती है।

 

ऐसी धारा जो बराबर समयांतराल के बाद परिपथ में दिशा बदलती है। प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।

इसे संक्षिप्त रूप में AC से व्यक्त करते हैं और उपकरण को ACजनित्र कहते हैं।

दिष्ट धारा (Direct Current)

धारा का एक दिशा में प्रवाह प्राप्त करने के लिए दो व्यक्तियों के स्थान पर दिक्परिवर्तक कहे जाने वाले एक उपकरण का उपयोग किया जाता है।

एक दिक्परिवर्तक धारा के प्रवाह को इधर-उधर की बजाए एक दिशा में बनाये रखता है।

इस स्थिति में स्थिर ब्रुश दिक्परिवर्तक के विपरीत हिस्सों से संपर्क बनाते हैं।

जैसे ही कुण्डली घुमती है यह चुम्बकीय क्षेत्र को आर-पार काटती है और धारा प्रेरित होती है।

 

कुंडली के आधे चक्कर के बाद दिक्परिवर्तक और पुरुषों के मध्य संपर्क उत्क्रमित हो जाता है।

अब प्रत्येक ब्रुश विपरीत खंड से स्पर्श करता है।

जैसे यह पहले आधे चक्कर के दौरान स्पर्श कर रहे थे।

ऐसा करके ब्रुश धारा की गति को केवल एक दिशा में बनाए रखते हैं।

 

ऐसा कोई उपकरण जो केवल एक ही दिशा में प्रवाहित होने वाली दिष्ट धारा पैदा करता है। DC जनित्र कहलाता है।

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