रूप बदलती ऊर्जा: ऊर्जा अपना अलग-अलग रूप कैसे बदलती है? और ऊर्जा का विकिरण

हमने सभी ऊर्जाओं को लड़कियां मानकर इनके नाम दिए हैं। ऊर्जा, किरण, रसायनी, ऊष्मा, स्थितिजा, गतिजा, यांत्रिका, बिजली वगैरह वगैरह।

ऊर्जा के स्रोत

सूरज हमारी ऊर्जा का स्रोत है। सूरज के अंदर पदार्थ के कणों से ऊर्जा का निर्माण होता है।

ऊर्जा का विकिरण

यह ऊर्जा किरणों के रूप में सारी दुनिया में फैलती है। अब क्योंकि यें किरणों के द्वारा हम तक पहुँचती है, हम इसे ऊर्जा का विकिरण कहते हैं।

कुछ ऊर्जा पेड़ों पर पहुँचती है और उससे पेड़ अपना खाना यानि रसायन बनाते हैं।

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ऊष्मीय ऊर्जा

कुछ किरणें पानी में जाकर ऊष्मीय ऊर्जा बनाती हैं। और पानी को गरम करके भाप में बदलती हैं, फिर आसमान में उड़ा देती हैं।

स्थितिज ऊर्जा

बादल बनते हैं, बारिश होती है, नदियां बहती हैं और इन नदियों का पानी फिर बांध में रोका जाता है। बांध में पानी काफी उंचाई पर स्थित होता है। यानि बांध में उसकी स्थिति की वजह से इस पानी में स्थितिज ऊर्जा होती है।

गतिज ऊर्जा से विद्युत उर्जा

बांध से पानी को जब छोड़ा जाता है, तब ये स्थिति ऊर्जा गतिज ऊर्जा बनती है।

गतिजा टरबाइन को घुमाती है और यांत्रिक ऊर्जा का रूप लेती है। जब यांत्रिकी जेनरेटर में बहुत बड़े चुम्बक को तार के कॉयल के अंदर घुमाती है, तो बिजली बन जाती है।

किरण ऊर्जा

बिजली बह कर आपके घर में पहुंचती है। तुम्हारे घर की बत्ती को जलाकर उसमें से किरणें बनकर बाहर निकलती है और जमीन से टकराते ही ऊष्मा बनकर हमारे हाथ से छूट जाती है।

वहीं दूसरी ओर एक बार फिर से यांत्रिकी बनकर ये बिजली तुम्हारे घर का पंखा घुमाती है।

रासायनिक ऊर्जा से यांत्रिकी ऊर्जा

अब अगर तुम बाहर निकल पड़ें तो तुम्हें अपने चारों ओर अलग-अलग रूप में ऊर्जा दिखाई देगी।

कोई आदमी अगर खाना खा रहा है। पेड़ों ने रासायनिक बनाई थी वह अनाज और सब्जियों में होती है जो अब इस आदमी के पेट में जाएगी। जब लोग चलते हैं तो शरीर में छुपे हुए रासायनिक यांत्रिकी में बदल कर पैरों को चलने की ताकत देती है।

साइकल चलाते समय यही रासायनिक यांत्रिकी बनकर पैरों को चलाती है और फिर साइकिल के पहिये को घुमाती है।

स्थितिज ऊर्जा गतिज में कैसे बदल जाती है?

अच्छा आप सभी ने कभी न कभी गुलेल से जरूर खेला होगा। यहां क्या होता है?

हमारे शरीर के ऊर्जावान रबड़ को खींचने में काम आती है।

जब रबड़ पूरी तरह से खिंची होती है, तो उसमें स्थितीजा यानी स्थितिज जो ऊर्जा भरी होती है और जैसे ही रबड़ को छोड़ा जाता है फिर स्थितिज ऊर्जा गतिज में बदल जाती है और पत्थर में पहुंच जाती है।

इसी वजह से पत्थर तेजी से दुर जाता ,है क्योंकि गुलेल की स्थितिज ऊर्जा अब गतिज ऊर्जा बनकर पत्थर के साथ जाती है।

तो अब देर किस बात की है निकलिए बाहर और देखिए कि आपको अपने चारों ओर ऊर्जा के कितने रूप दिखाई देते हैं और किसी भी चीज के चलने पर वह ऊर्जा अपने कितने रूप बदलती है।

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