हृदय का धड़कना क्या तुमने कभी महसूस किया है। दौड़ लगाने के बाद तेजी से धड़कते दिल की आवाज तुमने जरूर सुनी होगी।
कभी कभी डर जाने पर भी दिल की धक-धक। शायद तुमने सुनी हो। अपनी छाती पर हाथ रखो और खुद महसूस करो छाती के कौन से तरफ धड़कन ज्यादा ठीक से महसूस होती है।
बायीं तरफ धड़कन इसलिए होता है क्योंकि हमारा दिल ही यानी हृदय छाती के पिछड़े यानी पिंजर के थोड़ा सा बायीं तरफ होता है।
क्या तुम जानते हो कि हमारा ह्रदय दिन में करीब एक लाख बार धड़कता है यानी एक साल में करीब साढ़े तीन करोड़ बार बहुत मेहनत करता है और इसलिए यह शरीर का शायद सबसे ज्यादा हिम्मती और ताकतवर पुर्जा है।
https://youtu.be/347C1Zq3k5w?si=uE8GqQl_RPkAbSsZ
रक्त परिसंचरण तंत्र
रक्त शरीर भर में पहुंचता रहता है और लौटकर वापस आता रहता है। फेफड़ों में जाता है शुद्ध होता है और फिर चल पड़ता है शरीर भर में आक्सीजन और पोषक तत्व पहुँचाने के लिए। शरीर से वापस आता है कार्बन डाई ऑक्साइड लेकर जिसे छोड़ देता है फेफड़ों में तो ये कहानियां हमारे रक्त परिसंचरण तंत्र की जिसके कारण हम जीवित रहते हैं।
हृदय क्यों धड़कता है?
चलो देखते हैं हमारा ह्रदय हमारी मुट्ठी के आकार का मांसपेशियों से बना एक अंग है।
ये एक पंप की तरह काम करता है। इस पंप से रक्त सारे शरीर में पहुंचता है और लौटकर वापस आता है।
जाते समय ये ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व लेकर जाता है। और शरीर से वापस आते समय कार्बन डाइऑक्साइड लेकर वापस आता है।
यह आने जाने का चक्कर चलाने के लिए ही ये पंप धक-धक करता रहता है।
हृदय के कितने हिस्से होते है?
इसमें (हृदय) के चार हिस्से होते हैं दो दाएं और दो बाएं या दो ऊपर और दो नीचे।
-
दायां एट्रियम
-
दायां वेंट्रिकल
-
बायां एट्रियम
-
बायां वेंट्रिकल
ऊपर वाले भाग में एक एट्रियम और नीचे वाले में वेंट्रिकल तो ये हुआ बायां एक एट्रियम और ये दायां एट्रियम
तो नीचे वालों के नाम क्या होंगे। बिल्कुल सही बायां वेंट्रिकल और दायां वेंट्रिकल।
यह (हृदय) किस तरीके से काम करता है?
हृदय में रक्त लाने और बाहर ले जाने के लिए मानव पाइप या ट्यूब यानि नलिकाएं होती हैं जिन्हें रक्त वाहिनियां कहते हैं। हृदय से शुरू होकर पूरे शरीर में रक्त की छोटी-छोटी नलिकाओं का एक जाल सा बिछा रहता है।
क्या तुम अंदाजा लगा सकते हो कि अगर इन सारी नलिकाओं को जोड़ दो तो कुल लंबाई कितनी होगी।
एक लाख किलोमीटर के करीब यानी मुम्बई से दिल्ली और वापस के 50 चक्करों के बराबर।
यह जो नीले ट्यूब (veins) दिखाए गए हैं वो बताते हैं कि इनमें अशुद्ध और अशुद्ध का मतलब इसमें ऑक्सीजन कम है
शरीर के ऊपरी हिस्से यानी सर और भुजाओं से रक्त यहां ऊपरी ट्यूब पर आता है और पेट, पाँव इत्यादि निचले अंगों से इस निचली ट्यूब में आता है। दोनों मिलकर इस दाएं एट्रियम में कम ऑक्सीजन वाला रक्त छोड़ते हैं। इस एट्रियम का सिर्फ नीचे की तरफ यानी सिर्फ एकतरफा खुलने वाला एक वॉल्व है।
ऐसे ओर भी दरवाजे हैं इन्हें वॉल्व कहते हैं।
ये वाल्व तभी खुलेगा जब नीचे वाला वेंट्रिकल फैलेगा तब अशुद्ध रक्त यानी कम ऑक्सीजन वाला रक्त वेंट्रिकल में आ चुका होगा और उसके पीछे वाला वॉल्व बंद हो चुका होगा यानी वह उल्टा नहीं खुलेगा।
लेकिन वेंट्रिकल का ऊपर की तरफ खुलने वाला एक और दरवाजा है। जब ये वेंट्रिकल सिकुड़ जायेंगे तब जैसे एक पाउच को दबाने से अंदर का द्रव्य पेस्ट बाहर निकलता है वैसे ही यहां रक्त इन बायीं और दायीं ओर से नीली ट्यूब से बाहर चला जाएगा।
लेकिन यह बहार जाकर आगे आखिर जाएगा कहा बाकी शरीर में नहीं बल्कि फेफड़ों में एक नीली नलिका दायें फेफड़े में रक्त ले जाएगी और दूसरे बाएं फेफड़े में फेफड़ों में छोटी छोटी नलिकाएं होती हैं जहां इस अशुद्ध रक्त की मुलाकात ऑक्सीजन से भरपूर हवा से होगी। ये वो हवा जो हम जब सांस लेते हैं तब अंदर आती है।
अब ये रक्त लाल हो जाएगा क्योंकि अब इसमें ऑक्सीजन आ चुका है।
ये लाल रक्त फेफड़ों से एक बार फिर हृदय की तरफ जाएगा और ह्रदय में बाएं एट्रियम में अंदर आएगा।
यहां पर भी एकतरफा खुलने वाला एक वाल्व है।
जब वेंट्रिकल फैलेगा तब यह शुद्ध लाल रक्त वेंट्रिकल में खिंचा चला आएगा और जब वेंट्रिकल सिकुड़ आएगा तब ये ऊपर खुलने वाले वाल्व से बाहर सिर, भुजाओं के लिए, पेट और पैरों की तरफ जाएगा।
हृदय का सिकुड़ना और सामान्य हो जाना एक हद तक यानी एक धड़कन बनाता है और ये धक-धक चलती रहती है।