गोलाकार दर्पण (Spherical Mirror) क्या होता है? तथा अवतल दर्पण और उत्तल दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब बनना

अवतल दर्पण का उदहारण

कल्पना करें कि आपकी पोत नष्ट हो गई है और एक मरूस्थलीय द्वीप के किनारे पहुँच गई है और आपके पास केवल एक अवतल दर्पण के सिवाय और कुछ भी नहीं है।आपको ऊपर एक हेलिकॉप्टर होने की आवाज सुनाई देती है। आप क्या करेंगे।

अवतल दर्पण का उपयोग सूर्य के प्रकाश को सूखी घास और टहनियों पर फोकस करने के लिए किया जा सकता है। अवतल दर्पण को ऊपर सूर्य की ओर उठाएं और किसी ऐसे स्थान पर रखें कि परावर्तित प्रकाश सूखी घास और टहनियों के ढेर पर फोकस हो जाए। आप पाएंगे कि घास सुलगने लगती है और कुछ ही मिनटों में आग पकड़ लेती है।

गोलाकार दर्पण (Spherical Mirror)

अवतल दर्पण वह होता है जिसका परावर्तक प्रेशर अंदर की ओर वक्रीत होता है। किसी गोले के आंतरिक पृष्ठ की तरह।

 

उत्तल दर्पण वह होता है जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर विकृत होता है। किसी गोले के बाहरी पृष्ठ की तरह।

 

उत्तल दर्पण एवं अवतल वास्तव में एक बड़े गोले के भाग होते हैं, इसलिए उनमें वक्रता का केन्द्र होता है जो गोले के केंद्र के संगत होता है।

 

अवतल दर्पण (Concave Mirror)

अवतल दर्पण का चित्र

अवतल दर्पण का वक्रता केन्द्र चित्र में अक्षर C द्वारा प्रदर्शित किया गया है। गोले के केंद्र से दर्पण के मध्य से गुजरने वाली रेखा इसका मुख्य लक्ष्य कहलाती है।

दर्पण के पृष्ठ का वह बिंदु जिस पर मुख्य अक्ष दर्पण से मिलता है, वह ध्रुव कहलाता है और इसे चित्र में अक्षर A से दर्शाया गया है।

ध्रुव से वक्रता केंद्र तक की दूरी वक्रता की त्रिज्या कहलाती है, जिसे अक्षर R से निरूपित किया जाता है। वक्रता की त्रिज्या उसी गोली की त्रिज्या होती है, जिसका दर्पण एक भाग होता है।

 

मुख्य फोकस दर्पण के अग्रभाग में वह बिंदु होता है, जिस पर मुख्य अक्ष के समान्तर गमन करती हुई प्रकाश की किरणें परावर्तन के पश्चात् मिलती हैं। दर्पण से मुख्य फोकस की दूरी फोकस दूरी कहलाती है, जिसे अक्षर F से निरूपित किया जाता है।

किसी गोलीय दर्पण के पृष्ठ पर दो चरम बिंदुओं के बीच की दूरी इसका द्वारक कहलाती है। दिए गए चित्र में द्वारक को दूरी MN द्वारा निरूपित किया गया है।

छोटे द्वारक वाले गोलीय दर्पणों के लिए वक्रता की त्रिज्या फोकस दूरी के दोगुने के बराबर पाई जाती है।

 

किसी अवतल दर्पण में मुख्य अक्ष के समानान्तर गमन करती प्रकाश की किरणें परावर्तित होती हैं और दर्पण के आगे एक बिन्दु पर अभीसरीद होती है। अवतल दर्पण अभिसारी दर्पण भी कहलाते हैं।

 

उत्तल दर्पण (Convex Mirror)

उत्तल दर्पण का चित्र

हालांकि किसी उत्तल दर्पण में मुख्य अक्ष के समानान्तर गमन करती प्रकाश की किरणें दर्पण की पृष्ठ से परावर्तित होती है और अपसरित हो जाती हैं। ऐसे दर्पण अपसारी दर्पण भी कहे जाते हैं।

अपने पथ का अनुसरण करते हुए ये किरणें मुख्य अक्ष पर दर्पण के पीछे एक बिंदु से आरंभ होती प्रतीत होती हैं। यह बिंदु उत्तल दर्पण का मुख्य फोकस होता है। उत्तल दर्पण का वक्रता का केन्द्र भी दर्पण के पीछे की ओर ही स्थित होता है।

किसी अवतल दर्पण में मुख्य फोकस तथा वक्रता का केन्द्र दर्पण के आगे की ओर स्थित बिंदु होते हैं। हालांकि किसी उत्तल दर्पण में मुख्य फोकस तथा उत्तल दर्पण का वक्रता का केन्द्र। दर्पण के पीछे की ओर स्थिति होते हैं।

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