मछली एक पशु प्रोटीन का सस्ता स्रोत है।
पॉमफ्रेट, मैकरेल, टूना सारडीन और अन्य लोकप्रिय समुद्री मछलियां मछुआरों द्वारा खुले समुद्र में जाल डालकर पकड़ी जाती है।
लेकिन अत्याधिक शिकार से मछलियों की संख्या में भारी कमी आई है और यह संपूर्ण मछली जाति पर संकट की स्थिति है।
मछली पालन
मछली की मांग को पूरा करने का एक दीर्घकालीन तरीका है, मछली पालन जिसमें मछलियों का संवर्धन संरक्षित तालाबों, खोजों, जलाशयों या नदियों में किया जाता है। मछली पालन मीठे पानी और समुद्री जल दोनों में किया जा सकता है।
भारत में उत्तर प्रदेश और राजस्थान में कटला, रोहू और म्रिगल जैसी मछलियां होजों और जलाशयों में संबद्रत की जाती है।
कभी कभी जल मग्न धान के खेतों में भी मछली पालन किया जाता है।
बहुपालन
बहुपालन में उन विविध प्रकार की मछलियों का चयन किया जाता है, जो भोजन हेतु प्राकृतिक रूप से तालाब के विभिन्न स्तरों में रहती हैं। अलग-अलग स्तरों में होने से इन मछलियों को भोजन के लिए स्पर्धा नहीं करनी पड़ती है। बहुपालन से मछलियाँ तेजी से विकसित होती हैं, क्योंकि उन्हें जगह या भोजन के लिए आपस में स्पर्धा नहीं करनी पड़ती है।
अंडजनन
सामान्य तौर पर जुलाई-अगस्त में वर्षा ऋतु में अंड जनन होता है। इसके लिए मछली पालन तालाबों को मत्स्य डिम्ब प्राप्त करने के लिए तैयार करना होता है। जब अंगुलिक या मछली लगभग 150 मिली मीटर की हो जाती है, तो इन्हें होंजो और जलाशयों में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहां पर इनके आकार में वृद्धि होने तक रखा जाता है। चूंकि किसान मत्स्य डिब्ब आसानी से उपलब्ध नहीं होने के कारण मत्स्य प्रजनन अपनाने के लिए उत्सुक नहीं होते इसलिए मत्स्य प्रजनन को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
ग्रामीण इलाकों में किसानों को अंडे से मत्स्य डिम्ब, मत्स्य डिब्बे से बच्चे, बच्चे से अंगुलिक और अंगुलिक से व्यक्त तक पालन पोषण के चरणों के बारे में प्रशिक्षित किए जाने के प्रयास चल रहे हैं।