आज दूध, अंडे और मांस के लिए बड़ी मांग को केवल पशुपालन से ही पूरा किया जा सकता है। इसके लिए पशुधन का प्रबंधन यानी उनके खान-पान प्रजनन और उनके रोग नियंत्रण का प्रबंधन अनिवार्य है।
पशुपालन के लाभ
मवेशियों कि जरूरत दूध के साथ खेत के कार्यों के लिए ही होती है। दूध उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाने वाले पशु या दूध देने वाले पशु, डेरी पशु कहलाते हैं।
जबकि कृषि कार्य के लिए प्रयोग किए जाने वाले पशु कृषि पशु कहलाते हैं।
1. मवेशी पालन
भारत में गायों और भैंसों को पाला जाता है दूध देने वाले पशुओं स्थानीय नस्ल जैसे गिर, लाल साहिवाल तथा विदेशी नस्ल जैसे फ्रिसियन, जर्सी और ब्राउन का शंकर होते हैं।
इनके वांछित गुणों में लंबा दूध स्वर्ण काल तथा बीमारियों के प्रति इनकी प्राकृतिक प्रतिरोधकता शामिल है।
मवेशियों को भरपूर चारे और पोषक की जरूरत होती है बेहतर स्वास्थ्य और दूध काल बढ़ाने के लिए उन्हें सूक्ष्म पोषक तत्व भी खिलाया जाता है।
पशुओं को स्वच्छ और स्वस्थ रखना चाहिए उनको गंदगी और झड़े हुए बालों को हटाने के लिए नियमित रूप से ब्रश करना चाहिए।
उनका बाड़ा सफाई करने में आसान, ढलवा सतह वाला एवं हवादार होना चाहिए।
मवेशी को बाहरी तथा आंतरिक परजीवीयों से बचाने की जरूरत होती है पशुओं को टीकाकरण की भी जरूरत होती है।
स्वास्थ्य कर परिस्थितियों त्वचा रोगों और पेट में कृमि को जन्म सकती है।
2. मुर्गी पालन
मुर्गी पालन अंडे और मांस उत्पादन के लिए मुर्गा, बत्तख और मुर्गी पालते हैं।
स्थानीय किस्में जैसे असील बुशरा और चिट गाव को सामान्य बीमारियों के प्रति प्राकृतिक प्रतिरक्षण होता है।
उनसे प्राप्त मांस भी बेहतर गुणवत्ता का होता है। इनका प्रजनन सफेद लेग होन और रोड आईलैंडरी जैसी विदेशी किस्मों के साथ किया जाता है।
जो बेहतर अंडा उत्पादक है। मुर्गियों के वांछित गुण है कम रख रखाव गर्मी सहन कर पाने की क्षमता कम खाद्य जरूरत और बेहतर गुणवत्ता के चूजे अधिक संख्या में उत्पन्न करने की क्षमता।
ब्रायलर मांस के लिए पाले जाने वाले मुर्गे हैं।उनके पालन की स्थितियां अंडे देने वाली मुर्गी से भिन्न होती है।
ब्रायलर को प्रोटीन और वसायुक्त भोजन दिया जाता है।इनको उच्च मात्रा में विटामिन ए और के की जरूरत होती है।
बाड़े में सही तापमान बनाए रखना जरूरी होता है।
मुर्गीया विषाणु जीवाणु और का पैरासाइट के साथ सही आहार की कमी से भी प्रभावित हो सकती है।
बाड़े को नियमित रूप से संक्रमण नासि के छिड़काव की जरूरत होती है।मछली का भी पालन किया जा सकता है। यह प्रक्रिया मत्स्य पालन के रूप में जानी जाती है।
3. मत्स्य पालन
मत्स्य पालन मीठे और समुद्री जल दोनों में किया
जा सकता है।
कुछ मछलियां धान के जलमग्न के खेतों में भी पाली जाती है।
मत्स्य पालन उच्च बाजार मूल्य वाली मछलियों जैसे मुलेट, भेटकी, ऑयस्टर और झींगा के उत्पादन को बढ़ा देता है।
आजकल मछलियों के झुंड को खोजने के लिए एको साउंडर युक्त जहाजो तथा उपग्रहों का उपयोग किया जाता है
4. मधुमक्खी पालन
वाणिज्यिक रूप से शहद प्राप्ति के लिए मक्खियां, मधुवाटिका अथवा मधुमक्खी फार्म मे पाली जाती है।
भारत में सबसे प्रचलित किस्मों में भारतीय मधुमक्खीयां एपी सेरना इंडिका, रॉक मधुमक्खी एपिस डोरसेटा, छोटी मधुमक्खी ऐपिस फ्लोरी और इटालियन मधुमक्खी एपिस मेलीफेरा है।
इटालियन मधुमक्खी एपिस मेलीफेरा बहुत अधिक शहद उत्पादक करती है, डंक रहित होती है और तीव्र प्रजनन करती है।
शहद की गुणवत्ता उपलब्ध फूलों के प्रकार पर निर्भर करती है।